Sunday, February 13, 2011

HAPPY VALENTINE DAY

बड़ी मारा-मारी मची हुई है. कहीं प्यार--सेक्स का इज़हार हो रहा है तो कहीं प्यार पर बंदिश लगायी जा रही है. इस बीच मीडिया और दुनिया के अमीर लोग इस दिन के कांसेप्ट को बेच कर और अमीर बन रहे हैं. तो फिर मैं क्यों इस दिन की बधाई आपको दे रहा हूँ? किस पाले मैं हूँ मैं? जाहिर है लोग ऐसा ही कुछ जानना चाहेंगे. तो मैं बता दूँ की हमारा नारी-खंड प्रदेश जो आज का संताल परगना है, अपने आस-पास के प्रदेशों में जबरन अपनी भूमि को खो देने वाला, जबरन किसी और के साथ बंधने को मजबूर संताल परगना, महाभारत कल से ही  प्रेम की उत्कटता  का प्रतीक रहा है. पुरुष  ही नहीं नारी भी दैहिक आकर्षण को  मुखर स्वर दे  सकती हैं इसका उदहारण रहा है यह  प्रदेश--नारिखंड का प्रदेश. महाभारत के पन्नों  को पलटिये और देखिये की किस तरह कुंती की देहिक प्रेमाकांक्षा  यहाँ प्रज्वलित हो उठी थी. आज  भी यहाँ के वन-प्रांतर में प्रेम या की --देह से आत्मा तक की यात्रा-- के कई सहज दृष्य हमको मिल जाते हैं. चाहे देह से आत्मा तक की यात्रा हो या मन से तन तक की तृप्ति--यहाँ की मिटटी सब कुछ देने में सक्षम है. तो फिर बवाल कहे का.और फिर चाहे -अनचाहे  हम सब दुनिया की कई बातो को प्रत्यक्षा भी तो देख रहे हैं आज. मिश्रा में क्या हुआ--इंटर नेट ने क्या किया, सब जान रहे हैं. हमारा संताल परगना जन मुक्ति मोर्चा दुनया के तमाम लोगों की हर तरह की मुक्ति का संकल्प लेकर आगे बाधा है, हम मुक्ति के आनंद के बिना रुक नहीं सकते. हाँ बाजार जैसी शक्तियों ने जिस तरह से वेलेंटाइन  के करिश्मे  को खड़ा किया है हम जरूर उससे वेचेन हैं. बाज़ार हो तो है जो हम सबको नचा रहा है. पर कैसे निपटाना हसे? हम सबको मिलकर विचार कराना होगा. संताल परगना जन मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता इस विषय पर गंभीर बहस में लगे हुए हैं. आखिर तभी तो हम संताल परगना जन मुक्ति मोर्चा के उद्येश्यों में सफलता हासिल कर सकेंगे. जाते-जाते फिर से एक बार कह दें की मन से तन तक की तृप्ति या देह से आत्मा तक की यात्रा का हम हमेशा पक्षधर रहे है, तंत्रवाद के उदय के पहले से ही, तंत्र ने तो हमारे दर्शन को शास्त्रीय आधार मात्र दिया है. शिव और शक्ति के मिलन, अर्धनारीश्वर या उभय लिंगी संकल्पना हमारे इस प्रदेश की राग-राग में है. यह हमारी मुक्ति की खोज की दिशा भी है. क्या कहते हैं आप?

Wednesday, February 9, 2011

ऋणी संताल परगना के लोगों ने अपनी भाव-भीनी श्रद्धांजलि देकर पंकज जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की.

१७-२१ जनवरी तक आचार्य ज्योतींद्र प्रसाद झा 'पंकज' के पैतृक ग्राम--खैरबनी, पोस्ट--सारठ, जिला--देवघर, संताल परगना झारखण्ड में पंकज जी की स्मृति में पंच- दिवसीय चंडी-परायण यज्ञ का आयोजन हुआ. इस यज्ञ के मुख्य अतिथि थे झारखण्ड के कृषि-मंत्री श्री सत्यानन्द झा एवं प्रोफेसर सत्यधन मिश्र इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे. पंकज जी के तीसरे सुपुत्र एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद महाविद्यालय में असोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर  अमर नाथ था के सान्निध्य में कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम का सञ्चालन पंकज जी के दूसरे सुपुत्र और राजभाषा विभाग, भारत सरकार में उप-निदेशक डॉक्टर विश्वनाथ झा ने किया और पंकज जी के बड़े सुपुत्र डॉक्टर नन्द किशोर झा, जो यज्ञ समिति के अध्यक्ष भी थे, ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.
कार्यक्रम का उद्दघाटन करते हुए मंत्री श्री सत्यानन्द झा ने भरी सभा में गौरव के साथ इस बात को रखा की आज वह जो कुछ भी हैं वह पंकज जी की कृपा से ही हैं. पंकज जी ने उनके व्यक्तित्व को गढ़ा था. निराशा के दिनों में वह यह सोचकर हिम्मत रखते थे की पंकज जी जैसे महान पुरुष का शिष्य होकर उन्हें कभी हिम्मत नहीं हारना चाहिए और अंततः उन्हें सफलता मिली. उन्होंने घोषणा की कि पंकज जी के साहित्य को झारखण्ड सरकार संरक्षित रखे, इसका वे प्रयास करेंगे. पंकज जी के नाम सारठ में एक महाविद्यालय खोला जाये -- प्रोफेसर सत्यधन मिश्र की इस अपील का उन्होंने पुरजोर समर्थन किया और अपनी पूरी सेवा देने का वादा किया.
प्रोफेसर अमर नाथ झा ने बताया की आगामी ३० जून २०११ को देवघर में पंकज जी की ९२वीं जयंती मनायी जाएगी. २९ जून को प्रोफेसर सत्यधन मिश्र ७५ वर्ष पूरे कर लेंगे अतः उनकी हीरक जयंती भी मनाई जाएगी.
कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए डॉक्टर  विश्वनाथ झा ने कहा क़ि पंकज जी क़ि याद में उनकी जन्मभूमि में होने वाला यह यज्ञ पूरे गांववालों क़ि तरफ से पंकज जी को दी जाने वाली एक विनम्र श्रद्धांजलि है. यज्ञ-समिति के अध्यक्ष और पंकज जी के बड़े सुपुत्र डॉक्टर नन्द किशोर झा ने बताया क़ि इस पूरे यज्ञ में गाँव के लोगों ने तन-मन-धन से बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है.
ज्ञातव्य हो कि यह कार्यक्रम कई कारणों से खैरबनी के लिए ऐतिहासिक कार्यक्रम था. पहली बार इस गाँव में यज्ञ का आयोजन हुआ. पहली बार ही माँ दुर्गा क़ी प्रतिमा की पूजा भी इस गाँव में हुयी. फिर पहली बार ही पंकज जी को श्रद्धांजलि देते हुए ग्रामीणों ने मिलकर कोई कार्यक्रम किया. और पहली बार ही इस गाँव में किसी मंत्री का आगमन हुआ.
लगता है कि अब संताल परगना के मनीषियों कि सुधि लेने कि घडी आ गयी है. पंकज जी से शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब अन्य महाप्रभुओं कि स्मृति में भी आयोजित हो, ऐसा प्रयास हम करते रहेंगे. संताल परगना का 'इतिहास लिखा जाना अभी बाकी है' इस पुस्तक के प्रोटो-टाईप का विमोचन करते हुए मंत्री जी ने आशा व्यक्त की कि अब  संताल परगना का इतिहास भी विद्वानों का ध्यान आकर्षित करेगा. सभा में उपस्थित सभी लोगों एवं मीडिया के साथियों ने इस कार्यक्रम एवं पुस्तक की खूब चर्चा की. इस तरह पंकज जी के ऋणी संताल परगना के लोगों ने अपनी भाव-भीनी श्रधांजलि देकर पंकज जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की.