बड़ी मारा-मारी मची हुई है. कहीं प्यार--सेक्स का इज़हार हो रहा है तो कहीं प्यार पर बंदिश लगायी जा रही है. इस बीच मीडिया और दुनिया के अमीर लोग इस दिन के कांसेप्ट को बेच कर और अमीर बन रहे हैं. तो फिर मैं क्यों इस दिन की बधाई आपको दे रहा हूँ? किस पाले मैं हूँ मैं? जाहिर है लोग ऐसा ही कुछ जानना चाहेंगे. तो मैं बता दूँ की हमारा नारी-खंड प्रदेश जो आज का संताल परगना है, अपने आस-पास के प्रदेशों में जबरन अपनी भूमि को खो देने वाला, जबरन किसी और के साथ बंधने को मजबूर संताल परगना, महाभारत कल से ही प्रेम की उत्कटता का प्रतीक रहा है. पुरुष ही नहीं नारी भी दैहिक आकर्षण को मुखर स्वर दे सकती हैं इसका उदहारण रहा है यह प्रदेश--नारिखंड का प्रदेश. महाभारत के पन्नों को पलटिये और देखिये की किस तरह कुंती की देहिक प्रेमाकांक्षा यहाँ प्रज्वलित हो उठी थी. आज भी यहाँ के वन-प्रांतर में प्रेम या की --देह से आत्मा तक की यात्रा-- के कई सहज दृष्य हमको मिल जाते हैं. चाहे देह से आत्मा तक की यात्रा हो या मन से तन तक की तृप्ति--यहाँ की मिटटी सब कुछ देने में सक्षम है. तो फिर बवाल कहे का.और फिर चाहे -अनचाहे हम सब दुनिया की कई बातो को प्रत्यक्षा भी तो देख रहे हैं आज. मिश्रा में क्या हुआ--इंटर नेट ने क्या किया, सब जान रहे हैं. हमारा संताल परगना जन मुक्ति मोर्चा दुनया के तमाम लोगों की हर तरह की मुक्ति का संकल्प लेकर आगे बाधा है, हम मुक्ति के आनंद के बिना रुक नहीं सकते. हाँ बाजार जैसी शक्तियों ने जिस तरह से वेलेंटाइन के करिश्मे को खड़ा किया है हम जरूर उससे वेचेन हैं. बाज़ार हो तो है जो हम सबको नचा रहा है. पर कैसे निपटाना हसे? हम सबको मिलकर विचार कराना होगा. संताल परगना जन मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता इस विषय पर गंभीर बहस में लगे हुए हैं. आखिर तभी तो हम संताल परगना जन मुक्ति मोर्चा के उद्येश्यों में सफलता हासिल कर सकेंगे. जाते-जाते फिर से एक बार कह दें की मन से तन तक की तृप्ति या देह से आत्मा तक की यात्रा का हम हमेशा पक्षधर रहे है, तंत्रवाद के उदय के पहले से ही, तंत्र ने तो हमारे दर्शन को शास्त्रीय आधार मात्र दिया है. शिव और शक्ति के मिलन, अर्धनारीश्वर या उभय लिंगी संकल्पना हमारे इस प्रदेश की राग-राग में है. यह हमारी मुक्ति की खोज की दिशा भी है. क्या कहते हैं आप?