मेरी 25 नज़्में
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अमर पंकज झा (डॉ अमर नाथ झा) दिल्ली विश्वविद्यालय
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अमर पंकज झा (डॉ अमर नाथ झा) दिल्ली विश्वविद्यालय
(नज़्में)
1.
जज्बात बचाए रखना
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शायर है तू अशआर कहने के अन्दाज़ बचाए रखना
नज्म लिखने गजल सुनने के जज्बात बचाए रखना।
वक्त की नजाकत व मजबूरियों की बात सभी करते
सच से रु-ब-रु करा सकें जो वाकयात बचाए रखना।
हिला ना सकी तेज आँधियां अपनी ज़ड़ों से तुमको
तुझे तकने लगीं निगाहें ये लमहात बचाए रखना।
बेवक्त की बारिश में कभी फसल नहीं उगा करती
ये दौर भी बदलेगा भरोसे के हालात बचाए रखना।
पल-पल में गिरगिट सा रंग बदलता है जमाना मगर
सय़ाने संग मासूम भी यहां खयालात बचाए रखना।
बेखुदी में अक्सर आईना देखते-दिखाते हो 'अमर'
दिलों को समझ सको वो एहसासात बचाए रखना।
जज्बात बचाए रखना
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शायर है तू अशआर कहने के अन्दाज़ बचाए रखना
नज्म लिखने गजल सुनने के जज्बात बचाए रखना।
वक्त की नजाकत व मजबूरियों की बात सभी करते
सच से रु-ब-रु करा सकें जो वाकयात बचाए रखना।
हिला ना सकी तेज आँधियां अपनी ज़ड़ों से तुमको
तुझे तकने लगीं निगाहें ये लमहात बचाए रखना।
बेवक्त की बारिश में कभी फसल नहीं उगा करती
ये दौर भी बदलेगा भरोसे के हालात बचाए रखना।
पल-पल में गिरगिट सा रंग बदलता है जमाना मगर
सय़ाने संग मासूम भी यहां खयालात बचाए रखना।
बेखुदी में अक्सर आईना देखते-दिखाते हो 'अमर'
दिलों को समझ सको वो एहसासात बचाए रखना।
2.
ग़ज़ल क्या कहे मैने
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ग़ज़ल क्या कहे मैंने तुम तो खबरदार हो गए
जज्बात जो भड़के मेरे सब तेरे तरफदार हो गए।
दुश्मनों की कतार में तुमको नहीं रक्खा हमने
हम सावधान ना हुए और तुम असरदार हो गए।
सितम ढ़ाने के भी गजब तेरे अन्दाज हैं जालिम
जिनसे भी तुम हट के मिले वही सरमायेदार हो गए।
कुछ हम भी तो वाकिफ हैं हुकुमत की फितरत से
वो सब जो कल तक थे मेरे आज तेरे वफादार हो गए।
कुछ तो सिखलाते हो तुम दुनियादारी का सबब
यूँ ही नहीं मिलकर तुमसे लोग तेरे तलबदार हो गए।
कहते हैं के अदब में अदावत नहीं होती है 'अमर'
अदावत की हुनर में तो अब तुम भी समझदार हो गए।
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ग़ज़ल क्या कहे मैंने तुम तो खबरदार हो गए
जज्बात जो भड़के मेरे सब तेरे तरफदार हो गए।
दुश्मनों की कतार में तुमको नहीं रक्खा हमने
हम सावधान ना हुए और तुम असरदार हो गए।
सितम ढ़ाने के भी गजब तेरे अन्दाज हैं जालिम
जिनसे भी तुम हट के मिले वही सरमायेदार हो गए।
कुछ हम भी तो वाकिफ हैं हुकुमत की फितरत से
वो सब जो कल तक थे मेरे आज तेरे वफादार हो गए।
कुछ तो सिखलाते हो तुम दुनियादारी का सबब
यूँ ही नहीं मिलकर तुमसे लोग तेरे तलबदार हो गए।
कहते हैं के अदब में अदावत नहीं होती है 'अमर'
अदावत की हुनर में तो अब तुम भी समझदार हो गए।
3.
गफलत में है जमाना
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शबनम की ओट में, हैं वो शोले गिरा रहे
गफलत में है जमाना, जो महबूब समझ रहे ।
नफ़ासत से झुकते हैं, वो क़त्ल के लिये
मासूमियत ये आपकी, के सजदा बता रहे।
परोसते फरेब हैं, डूबो-डूबो के चाशनी में
कातिल भी आज, खुद को मसीहा बता रहे ।
वो कुदरत को बचाते, दरख्तों को काटकर
जंगलात उजाड़ते, और झाड़ियां सींचते रहे ।
लो खैरात बांटते हैं, रोज हमीं को लूटकर
पर लुटकर भी बेखुदी में, हम जश्न मनाते रहे ।
रहबरी का गुमां तुझे, है तू मगरूर भी 'अमर'
पड़ गए सब पसोपेश में, तेरा गुरूर देखते रहे।
गफलत में है जमाना, जो महबूब समझ रहे ।
नफ़ासत से झुकते हैं, वो क़त्ल के लिये
मासूमियत ये आपकी, के सजदा बता रहे।
परोसते फरेब हैं, डूबो-डूबो के चाशनी में
कातिल भी आज, खुद को मसीहा बता रहे ।
वो कुदरत को बचाते, दरख्तों को काटकर
जंगलात उजाड़ते, और झाड़ियां सींचते रहे ।
लो खैरात बांटते हैं, रोज हमीं को लूटकर
पर लुटकर भी बेखुदी में, हम जश्न मनाते रहे ।
रहबरी का गुमां तुझे, है तू मगरूर भी 'अमर'
पड़ गए सब पसोपेश में, तेरा गुरूर देखते रहे।
4.
तेरे आने की ही आहट से
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तेरे आने की ही आहट से, मौसम का बदल जाना
परिन्दों का चहकना, या कलियों का मुस्कुराना।
कल के फ़ासले मिटाकर, अब गुफ़्तगू भी करना
नज्में भी उनका सुनना और ना नज़रें ही चुराना।
बोलती हुई सी आँखों से, हँस-हँस के ये बताना
अल्फाज भर नहीं, ना तुम बीता हुआ फसाना।
मत कर गिला ज़फा का, फिर बदला दौरे-जमाना
आओ कल की बात बिसरें, और गाएँ नया तराना।
पढ़ लेते हैं हाले-दिल जो, चेहरे की सिलवटों से ही
सीने के जख्म सीकर भी, तुम यूँ मुस्कराते रहना।
दिलों की बातें सुन, 'अमर' दिल से ही बातें करना
दिमागदारों की बस्ती में तू, दिल को बचाए रखना।
परिन्दों का चहकना, या कलियों का मुस्कुराना।
कल के फ़ासले मिटाकर, अब गुफ़्तगू भी करना
नज्में भी उनका सुनना और ना नज़रें ही चुराना।
बोलती हुई सी आँखों से, हँस-हँस के ये बताना
अल्फाज भर नहीं, ना तुम बीता हुआ फसाना।
मत कर गिला ज़फा का, फिर बदला दौरे-जमाना
आओ कल की बात बिसरें, और गाएँ नया तराना।
पढ़ लेते हैं हाले-दिल जो, चेहरे की सिलवटों से ही
सीने के जख्म सीकर भी, तुम यूँ मुस्कराते रहना।
दिलों की बातें सुन, 'अमर' दिल से ही बातें करना
दिमागदारों की बस्ती में तू, दिल को बचाए रखना।
5.
सच कहने का मलाल कब तक करोगे
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ठहरो नहीं ऐ जिन्दगी तुम कभी, सरकती सही चलकर तो देखो।
बदली इबारत हर्फ़ को पढ़ो, बदलने का हुनर सीखकर तो देखो।
रंग व गुलाल में डूबा जमाना, कुछ देर तुम भी थिरककर तो देखो।
रकीब भी हबीब से मिलेंगे यहाँ, बस जरा तुम मुस्कुराकर तो देखो।
दिखते नशे में ये झूमते से लोग, करीब आप उनके जाकर तो देखो।
धुआँ ही धुआँ चिलमनों के पीछे, बहकते दिलों को छूकर तो देखो।
होली की फिजा है आती ही रहेगी, अपनी उम्मीदें सजाकर तो देखो।
शराबी आँखों में रूहानी सुकू है, खामोश निगाहें उठाकर तो देखो।
सच कहने का मलाल कब तक करोगे, थकन से अगन जलाकर तो देखो।
जमाना जल रहा सियासी-अदावत है, नफ़रतो की लपटें बुझाकर तो देखो।
अगले बरस भी वो तकती रहेंगी, दिलों में मुहब्बत कुछ बचाकर तो देखो।
ता-उम्र संभलने की कोशिश ही क्यों, 'अमर' एक बार फिसलकर तो देखो।
बदली इबारत हर्फ़ को पढ़ो, बदलने का हुनर सीखकर तो देखो।
रंग व गुलाल में डूबा जमाना, कुछ देर तुम भी थिरककर तो देखो।
रकीब भी हबीब से मिलेंगे यहाँ, बस जरा तुम मुस्कुराकर तो देखो।
दिखते नशे में ये झूमते से लोग, करीब आप उनके जाकर तो देखो।
धुआँ ही धुआँ चिलमनों के पीछे, बहकते दिलों को छूकर तो देखो।
होली की फिजा है आती ही रहेगी, अपनी उम्मीदें सजाकर तो देखो।
शराबी आँखों में रूहानी सुकू है, खामोश निगाहें उठाकर तो देखो।
सच कहने का मलाल कब तक करोगे, थकन से अगन जलाकर तो देखो।
जमाना जल रहा सियासी-अदावत है, नफ़रतो की लपटें बुझाकर तो देखो।
अगले बरस भी वो तकती रहेंगी, दिलों में मुहब्बत कुछ बचाकर तो देखो।
ता-उम्र संभलने की कोशिश ही क्यों, 'अमर' एक बार फिसलकर तो देखो।
6.
इंतहा जुल्म का कितना बाकी बचा है
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नक़ाबपोशी की जरुरत किसे है यहाँ
खुला खेल है दांव आजमाते हैं लोग
लम्हों में हबीब, लमहों में रकीब
बड़ी फख्र से फितरत दिखाते हैं लोग ।
बर्बादियों का जश्न आज जोरों पे है
अपनी बेहयाई पे खिलखिलाते हैं लोग
जलजला आ रहा है, है चीखो-पुकार
पे जश्ने-मस्ती में डूबे अजाने हैं लोग ।
इंकलाबी नारों की रस्मी रवायत भी
गूंजती फिजा में रोज, सुनाते हैं लोग
मादरे-वतन पे मिटने की कसमें भी
अजान की तरह रोज लगाते हैं लोग ।
बेमानी आज करना बातें सुकूँ का
ग़ज़ल क्यों कहे है हकीकत बयानी
आज तुम पिटे हो कल सब पिटेंगे
के खुद से ही आज बेखबर हैं लोग ।
बदल दूंगा आलम जुल्मते-सितम का
घरों में दुबक कर अब बताते हैं लोग
बदला है निज़ाम अब खाँसना मना है
रूह काँप जाती सब जानते हैं लोग ।
इंतहा जुल्म का कितना बाकी बचा है
आँखों में किसके कितना पानी बचा है
किसकी रगों का खूँ उबलने लगा है
'अमर' वाकया सब जानते हैं लोग ।
खुला खेल है दांव आजमाते हैं लोग
लम्हों में हबीब, लमहों में रकीब
बड़ी फख्र से फितरत दिखाते हैं लोग ।
बर्बादियों का जश्न आज जोरों पे है
अपनी बेहयाई पे खिलखिलाते हैं लोग
जलजला आ रहा है, है चीखो-पुकार
पे जश्ने-मस्ती में डूबे अजाने हैं लोग ।
इंकलाबी नारों की रस्मी रवायत भी
गूंजती फिजा में रोज, सुनाते हैं लोग
मादरे-वतन पे मिटने की कसमें भी
अजान की तरह रोज लगाते हैं लोग ।
बेमानी आज करना बातें सुकूँ का
ग़ज़ल क्यों कहे है हकीकत बयानी
आज तुम पिटे हो कल सब पिटेंगे
के खुद से ही आज बेखबर हैं लोग ।
बदल दूंगा आलम जुल्मते-सितम का
घरों में दुबक कर अब बताते हैं लोग
बदला है निज़ाम अब खाँसना मना है
रूह काँप जाती सब जानते हैं लोग ।
इंतहा जुल्म का कितना बाकी बचा है
आँखों में किसके कितना पानी बचा है
किसकी रगों का खूँ उबलने लगा है
'अमर' वाकया सब जानते हैं लोग ।
7.
रुसवाइयों का जश्न
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दर्द के प्याले मेरे नसीब में भी कुछ कम न थे
दीगर थी बात कि, मैं पीता भी रहा मुस्कुराता भी रहा।
दीगर थी बात कि, मैं पीता भी रहा मुस्कुराता भी रहा।
अब कैसे कहें के फख्र था जिसकी यारी पे मुझे
वही तबीयत से रोज-रोज, दिल मेरा रुलाता भी रहा।
वही तबीयत से रोज-रोज, दिल मेरा रुलाता भी रहा।
हैरान हूँ आप की इस मासूमियत पे ए दोस्त
मेरा साथ नागवार पे, औरों की महफ़िल सजाता रहा।
मेरा साथ नागवार पे, औरों की महफ़िल सजाता रहा।
मेरे शिकवे को इस कदर थाम रक्खा है आपने
ये न देखा के हजारों जख्म, मैं खुदी से सहलाता रहा।
ये न देखा के हजारों जख्म, मैं खुदी से सहलाता रहा।
क्यों तन्हा मुझे देख अब नजरें चुराते हुजूर
रुसवाइयों का जश्न यूँ ही, मैं रोज-रोज मनाता रहा।
रुसवाइयों का जश्न यूँ ही, मैं रोज-रोज मनाता रहा।
जरूरत थी बेइन्तिहा जिसकी तुझे ए 'अमर',
वो ही आज तुमसे, फासले का मीनार बनाता रहा।
वो ही आज तुमसे, फासले का मीनार बनाता रहा।
8.
अब मुझे देखने लगे लोग
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
तमन्ना-ए-लबे-जाम दीवानगी मेरी
अब मुझे देखने लगे लोग
उफ! ये शोखी नफासत सलासत तिरा
मुतास्सिर होने लगे लोग।
अब मुझे देखने लगे लोग
उफ! ये शोखी नफासत सलासत तिरा
मुतास्सिर होने लगे लोग।
वाह! क्या खुमारे-जिस्मे-नाजुक
मिट गया शिद्दते-शौक
खिरमने-दिल का शरीके-हाल
मुझे कहने लगे लोग।
मिट गया शिद्दते-शौक
खिरमने-दिल का शरीके-हाल
मुझे कहने लगे लोग।
अब तो ले आ पैमाने-वफा
ता-ब-लब ऐ नूरे-हयात
अहदे-वफा सहरो-शाम दर पे
सिजदा करने लगे लोग।
ता-ब-लब ऐ नूरे-हयात
अहदे-वफा सहरो-शाम दर पे
सिजदा करने लगे लोग।
आरजू शबे-वस्ल की नवा-ए-ज़िगर खराश
मैकदे में तनहाई व साकी-ए-शबाब
ये क्या रवायत तेरे निजाम की
पेशे-दस्ती-ए-बोसां को दौलत से
अक्सर तौलने लगे लोग.
मैकदे में तनहाई व साकी-ए-शबाब
ये क्या रवायत तेरे निजाम की
पेशे-दस्ती-ए-बोसां को दौलत से
अक्सर तौलने लगे लोग.
डर आतिशे-दोजख का क्या
हकीके-इश्क सा जुनूं बढ़ गया 'अमर'
चूमना चाहता गुले-रंगे-रुखसार हया क्या
अब सब जानने लगे लोग.
हकीके-इश्क सा जुनूं बढ़ गया 'अमर'
चूमना चाहता गुले-रंगे-रुखसार हया क्या
अब सब जानने लगे लोग.
9.
आपको देखा किया है हमने
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अमर पंकज ( डा अमर नाथ झा )
हसरत भरी निगाहों से आपको देखा किया है हमने
अहले-करम हैं आपके जिनपे, उसने भी हाय यों कभी देखा होता ।
चन्द लमहात की गुफ्तगू से जों मचला है दिल मेरा
अफशोस आपके गेसूओं से खेलता है जो, वो भी कभी मचला होता।
ब-रु-ए कार खड़ा कोई मजनूं वहां नहीं फिर भी साहिब
पैकरे-तस्वीर की मानिन्द दिल में उसने, आपको जों रक्खा होता।
जौके-वस्ल से हरदम आपने दिया किया है जिस्त का मजा लेकिन
महरुम-ए-किस्मत पुरकरी छोड, उसने सादगी जों जाना होता।
ज़ियां-वो-सूद की फिकर में भटकता दूदे-चरागे महफिल की तरह
चरागे-शम्मा में मुज़्मर रूहे-वफा को, कभी तो उसने परखा होता।
नासमझ कहे दुनिया तो क्या चूम लूं राहे-फना भी 'अमर'
सोजे-निहां जल रहा है काश, तुझे भी उसने कभी समझा होता।
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अमर पंकज ( डा अमर नाथ झा )
हसरत भरी निगाहों से आपको देखा किया है हमने
अहले-करम हैं आपके जिनपे, उसने भी हाय यों कभी देखा होता ।
चन्द लमहात की गुफ्तगू से जों मचला है दिल मेरा
अफशोस आपके गेसूओं से खेलता है जो, वो भी कभी मचला होता।
ब-रु-ए कार खड़ा कोई मजनूं वहां नहीं फिर भी साहिब
पैकरे-तस्वीर की मानिन्द दिल में उसने, आपको जों रक्खा होता।
जौके-वस्ल से हरदम आपने दिया किया है जिस्त का मजा लेकिन
महरुम-ए-किस्मत पुरकरी छोड, उसने सादगी जों जाना होता।
ज़ियां-वो-सूद की फिकर में भटकता दूदे-चरागे महफिल की तरह
चरागे-शम्मा में मुज़्मर रूहे-वफा को, कभी तो उसने परखा होता।
नासमझ कहे दुनिया तो क्या चूम लूं राहे-फना भी 'अमर'
सोजे-निहां जल रहा है काश, तुझे भी उसने कभी समझा होता।
10.
गजब की तूने दोस्ती निभाई है
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ऐ दोस्त क्या गजब की तूने दोस्ती निभाई है, के दोस्ती भी आज एक रफ़िक से शरमाई है।
मोहब्बत में अदावत अब कोई सीखे तुमसे, तेरी तासीर ही जुल्मते-जहराव और बेवफाई है।
सब रिन्द हैं यहाँ कौन देखे दर्दे-निहाँ किसी का, इस महफ़िल में तो सिर्फ अफसुर्दगी गहराई है।
दिल की खिलवतों में मस्तूर थी शोखे-तमन्ना, अब ये सोजे-जिगर भी तेरे तोहफे की रूसवाई है।
ड़ूबकर दिल की गहराईयों में देख ऐ तबस्सुम, बावला-इश्क इंतहा तेरे ही रूह की परछाईं है।
दिल्ली की दुनिया में दिल महज एक खिलौना है 'अमर' कहां यहाँ ज़ज्बात अोर कहां यहाँ पुरवाई है।
मोहब्बत में अदावत अब कोई सीखे तुमसे, तेरी तासीर ही जुल्मते-जहराव और बेवफाई है।
सब रिन्द हैं यहाँ कौन देखे दर्दे-निहाँ किसी का, इस महफ़िल में तो सिर्फ अफसुर्दगी गहराई है।
दिल की खिलवतों में मस्तूर थी शोखे-तमन्ना, अब ये सोजे-जिगर भी तेरे तोहफे की रूसवाई है।
ड़ूबकर दिल की गहराईयों में देख ऐ तबस्सुम, बावला-इश्क इंतहा तेरे ही रूह की परछाईं है।
दिल्ली की दुनिया में दिल महज एक खिलौना है 'अमर' कहां यहाँ ज़ज्बात अोर कहां यहाँ पुरवाई है।
11.
सब दिन याद रक्खें
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वो आपने दी सीख जो के सब दिन याद रक्खें, फिर जिंदगी ने लीं करवटें सब दिन याद रक्खें।
चाँद छूने की ख़्वाहिश थी बादलों को चीरकर, मिल गया चाँद जा बादलों से सब दिन याद रक्खें।
फिक्र थी कब दुश्मनों की पर आज बेरुख आप हैं, बेरुखी भी तो आपकी सब दिन याद रक्खें।
हक़ किसे फरियाद का चाहत बनाए रक्खें, नज़रों की कशिश आपकी सब दिन याद रक्खें।
वक्त ना ठंढ़े बदन या दिल के शोले-इश्क़ का, शबनम सी हँसी दे दीजिये सब दिन याद रक्खें।
यूँ तो अपनी बेखुदी पर हँसता है रोज 'अमर', अब आप ऐसे हँस दिए के सब दिन याद रक्खें।
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वो आपने दी सीख जो के सब दिन याद रक्खें, फिर जिंदगी ने लीं करवटें सब दिन याद रक्खें।
चाँद छूने की ख़्वाहिश थी बादलों को चीरकर, मिल गया चाँद जा बादलों से सब दिन याद रक्खें।
फिक्र थी कब दुश्मनों की पर आज बेरुख आप हैं, बेरुखी भी तो आपकी सब दिन याद रक्खें।
हक़ किसे फरियाद का चाहत बनाए रक्खें, नज़रों की कशिश आपकी सब दिन याद रक्खें।
वक्त ना ठंढ़े बदन या दिल के शोले-इश्क़ का, शबनम सी हँसी दे दीजिये सब दिन याद रक्खें।
यूँ तो अपनी बेखुदी पर हँसता है रोज 'अमर', अब आप ऐसे हँस दिए के सब दिन याद रक्खें।
12.
अहबाबे-दस्तूर
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा )
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा )
इस शहर में अहबाबे-दस्तूर निराली है
रफीक-बावले की कदम-कदम पे रुस्वाई है
राहे-हस्ती का हमराज बनाया था आपने ही
निभाई ना गई तो ये इल्जामे-बेवफाई है।
रफीक-बावले की कदम-कदम पे रुस्वाई है
राहे-हस्ती का हमराज बनाया था आपने ही
निभाई ना गई तो ये इल्जामे-बेवफाई है।
मस्तूर थी तमन्ना-ए-शोख दिल की खिलवतों में
तोहफा तिरा भी दोस्त क्या सोजे-ज़िगर है
सुन सुकुत की सदाएं देख दर्दे-निहां हमारा
बलानोश बना गया अफससुर्दगी बचाई है।
तोहफा तिरा भी दोस्त क्या सोजे-ज़िगर है
सुन सुकुत की सदाएं देख दर्दे-निहां हमारा
बलानोश बना गया अफससुर्दगी बचाई है।
बेरूह गिला करना तेरे जुल्मते-जहराव की
ये बेरुखी भी आपकी मैने दिल से लगाई है
दिल की दुनिया में मत पूछ 'अमर' कीमत अपनी
आबे-फिरदौस छोड़ा रस्मे-दोस्ती निभाई है।
ये बेरुखी भी आपकी मैने दिल से लगाई है
दिल की दुनिया में मत पूछ 'अमर' कीमत अपनी
आबे-फिरदौस छोड़ा रस्मे-दोस्ती निभाई है।
13.
गम संभाल रक्खें
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
महफिल में गुरेजा किया आपने के सब दिन याद रक्खें
नहीं दी मुहब्बत तो क्या निशाते-कोहे-गम संभाल रक्खें
मौजे-खिरामे-यार की कशिश हश्र तलक याद रक्खें
ये कस्दे-गुरेज भी आपकी है के सब दिन याद रक्खें।
नहीं दी मुहब्बत तो क्या निशाते-कोहे-गम संभाल रक्खें
मौजे-खिरामे-यार की कशिश हश्र तलक याद रक्खें
ये कस्दे-गुरेज भी आपकी है के सब दिन याद रक्खें।
तलातुम से घिरा तिशना हूँ इजहारे-हाल छिपाए रक्खें
कशाने इश्क़ हूँ तो फरियाद क्यों पासे-दर्द याद रक्खें
रफू-ए-जख्म ना अब देख चश्मे फुसूंगर याद रक्खें
खू-ए-सवाल नहीं मुझको पे खन्द-ए-दिल याद रक्खें।
कशाने इश्क़ हूँ तो फरियाद क्यों पासे-दर्द याद रक्खें
रफू-ए-जख्म ना अब देख चश्मे फुसूंगर याद रक्खें
खू-ए-सवाल नहीं मुझको पे खन्द-ए-दिल याद रक्खें।
ताकते-बेदादे-इंतिज़ार है ऐजाजे-मासीहा याद रक्खें
शबे-हिजराँ की तमन्ना में ऐशे-बेताबी याद रक्खें
आसाँ तो नहीं यूं ख़ुद की बेखुदी पे हँसना 'अमर'
मगर आप मुहाल हँसे सारे-बज़्म के सब दिन याद रक्खें।
शबे-हिजराँ की तमन्ना में ऐशे-बेताबी याद रक्खें
आसाँ तो नहीं यूं ख़ुद की बेखुदी पे हँसना 'अमर'
मगर आप मुहाल हँसे सारे-बज़्म के सब दिन याद रक्खें।
14.
दिल पारा-पारा हुआ
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
क्या हुआ जो पायी तेरे दर पे रुसवाई हमने
दिल पारा-पारा हुआ पर रस्मे-अहबाब तो निभाई हमने
दस्तूर है ये न देख दिले-बहशी की जानिब
इश्क़ की इंतहां का यही सुरूर इसे दिल से लगाई हमने।
दिल पारा-पारा हुआ पर रस्मे-अहबाब तो निभाई हमने
दस्तूर है ये न देख दिले-बहशी की जानिब
इश्क़ की इंतहां का यही सुरूर इसे दिल से लगाई हमने।
जिगर जला-जला करके मिटाता रहा वजूदे-हस्ती
वैसे भी दो पल के लिए तेरी बाहों की तमन्ना जगाई हमने
गुंचों से मुहब्बत की है तो खारों की परवाह न कर
सीने से लगा अब परहेज नहीं इश्क़ की रीत बताई हमने।
वैसे भी दो पल के लिए तेरी बाहों की तमन्ना जगाई हमने
गुंचों से मुहब्बत की है तो खारों की परवाह न कर
सीने से लगा अब परहेज नहीं इश्क़ की रीत बताई हमने।
मौसमे-गुल बहुत हैं बागों के इस शहर में रश्के-महताब
सबा-ए-ख़ास आज सुर्ख-रु आरिजों की आरजू सजाई हमने
एतमादे-नजर ही नहीं सीरत भी देख कहते हैं वो 'अमर'
पशेमान हूँ क्या कहूँ अभी तो सूरते-हुश्न से नजर हटाई हमने।
सबा-ए-ख़ास आज सुर्ख-रु आरिजों की आरजू सजाई हमने
एतमादे-नजर ही नहीं सीरत भी देख कहते हैं वो 'अमर'
पशेमान हूँ क्या कहूँ अभी तो सूरते-हुश्न से नजर हटाई हमने।
15.
बेरुह मशीनों सी चल रही है जिंदगी
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क्या बेरुह मशीनों सी चल रही है ज़िन्दगी तेरी
या ता-उम्र बे-ठौर ही भगती रहेगी जिंदगी तेरी
या ता-उम्र बे-ठौर ही भगती रहेगी जिंदगी तेरी
ये मकान ये दुकान रिश्तेदारियाँ ठीक हैं लेकिन
कुछ लमहात तो चुरा संवर जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
कुछ लमहात तो चुरा संवर जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
हाँ रब ने तो नवाजा है फ़ने-आशआर से तुमको
महफिलों को रंग दे खिल जाएगी ज़िन्दगी तेरी
महफिलों को रंग दे खिल जाएगी ज़िन्दगी तेरी
माना कि तेरे हुश्न के क़द्रदान बहुत होंगे मगर
इल्म की कदर कर बदल जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
इल्म की कदर कर बदल जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
ठीक है कि हर बार आता नहीं दहर में रोज़े-अजल
पर अँधेरों में शाम्मा तो जला रंग जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
पर अँधेरों में शाम्मा तो जला रंग जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
मंजिले-मक़सूद मिलता नहीं कौनेने-गलेमर की सिम्त
ये इज़ारे-सुख़न है 'अमर' यूँ छूट जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
ये इज़ारे-सुख़न है 'अमर' यूँ छूट जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
16.
नादानी होगी
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खुद के जज़्बात को ना समझाआपकी ही नादानी होगी
मअरकां-ए-जां ने नाशाद किया ये भी गलतबयानी होगी
संगे-मोती की परख तो मुझे भी कुछ कम न रही हुजूर
ज़ुदा ये बात कुछ सुर्ख-रु-आरिजों की रही मनमानी होगी।
मअरकां-ए-जां ने नाशाद किया ये भी गलतबयानी होगी
संगे-मोती की परख तो मुझे भी कुछ कम न रही हुजूर
ज़ुदा ये बात कुछ सुर्ख-रु-आरिजों की रही मनमानी होगी।
होती शर्ते-वफा नहीं रिश्ता-ए-खूं की भी मेरे रहनुमा
हमराज़ कहो तो हर्फे-अल्फ़ाज को पढ़नी बेजुबानी होगी
इतमीनान रख यूं जिगर होता नहीं किसी का चाक-चाक
बस कोहे-गम की फ़ितरत गम-ख्वार को समझानी होगी।
हमराज़ कहो तो हर्फे-अल्फ़ाज को पढ़नी बेजुबानी होगी
इतमीनान रख यूं जिगर होता नहीं किसी का चाक-चाक
बस कोहे-गम की फ़ितरत गम-ख्वार को समझानी होगी।
किसको बताऊँ कि दहर में तीन-तेरह के हिसाब इतने हैं
के मेरी सदा-ए-मुफ़सिली तुम तलक कभी न पहुंची होगी
गर चीख-चीखकर करूँ बयां तो भी क्या होगा 'अमर'
अब भीड़-ए-तमाशाई बनना चौराहे-आम बेमानी होगी।
के मेरी सदा-ए-मुफ़सिली तुम तलक कभी न पहुंची होगी
गर चीख-चीखकर करूँ बयां तो भी क्या होगा 'अमर'
अब भीड़-ए-तमाशाई बनना चौराहे-आम बेमानी होगी।
17.
जब से मेरी ज़िन्दगी में आप आ गए
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जब से हुज़ूर मेरी ज़िन्दगी में आप आ गए
ज़िन्दगी ने अपने पते-ठिकाने बदल लिए।
ज़िन्दगी ने अपने पते-ठिकाने बदल लिए।
पता न था कि आप मेरी मंजिल थे मगर
गुसले-मौजे-हयात के कायदे सीखा दिए।
गुसले-मौजे-हयात के कायदे सीखा दिए।
पहिले तो मैं बेफिक्र था बेख़ुद भी था जनाब
तारक़-ए-दुनियाँ से अब मुतबिर बना दिए।
तारक़-ए-दुनियाँ से अब मुतबिर बना दिए।
शिद्दत से जोड़ा आपने शीशा-ए-दिल मेरा
दौड़ने लगी अब जिंदगी ये क्या कर दिए।
दौड़ने लगी अब जिंदगी ये क्या कर दिए।
फ़ज़ाओं के साथ भटकती थी मेरी रुह भी कभी
बीत चुके अब वो बेदरे-वक्त आप सब सह गए।
बीत चुके अब वो बेदरे-वक्त आप सब सह गए।
शुक्रिया कहूँगा नहीं ये इक एहसास है 'अमर'
देख लीजिये आप आज हम आपके ही रह गए।
देख लीजिये आप आज हम आपके ही रह गए।
18.
हमारी आँखों में आओ तो
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हमारी आँखों में आओ तो रोज बाताएँ तुमको
शोख-हसीनों को सताने की अदाएँ क्या है
फरिश्ता नहीं दीवाना हूँ यही रहने दो मुझे
बेकरारियों से पूछो कि लुत्फ़े-आशिक़ी क्या है।
शोख-हसीनों को सताने की अदाएँ क्या है
फरिश्ता नहीं दीवाना हूँ यही रहने दो मुझे
बेकरारियों से पूछो कि लुत्फ़े-आशिक़ी क्या है।
महकते हुए अंफ़ास व लरजते हुए अल्फ़ाज़ तेरे
सिरफ़ हमीं जानते हैं कि तेरे आलमे-हुश्न क्या है
बार-बार जख्मे-ज़िगर ने किया है ख़ुश्क ज़िंदगी
क्या बताऊँ तुझे बाहों में लेने का तखय्युल क्या है।
सिरफ़ हमीं जानते हैं कि तेरे आलमे-हुश्न क्या है
बार-बार जख्मे-ज़िगर ने किया है ख़ुश्क ज़िंदगी
क्या बताऊँ तुझे बाहों में लेने का तखय्युल क्या है।
दुनियाँ की हवादिसें कभी परेशां न कर सही हमको
निगाहें आज भी तकती हैं के इशारे-बुलबुल क्या है
कैसे भूल जाऊँ लहजा-ए-तरन्नुम की गुफ्तगू 'अमर'
ब-हर-तौर वकीफ़े-राज तू खुदा-रा और रक्खा क्या है।
निगाहें आज भी तकती हैं के इशारे-बुलबुल क्या है
कैसे भूल जाऊँ लहजा-ए-तरन्नुम की गुफ्तगू 'अमर'
ब-हर-तौर वकीफ़े-राज तू खुदा-रा और रक्खा क्या है।
19.
दास्ताँ-ए-जांकनी
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दास्ताँ-ए-जांकनी
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पासबां के कफ़स में गुम-गुस्ता अदम तू
सुन के दास्ताँ-ए-जांकनी चश्म तर हो गया
सिर्फ हमीं थे शाहिद उलफते-बहम के
मशीयते-फ़ितरत ये अब मुश्तहर हो गया।
सुन के दास्ताँ-ए-जांकनी चश्म तर हो गया
सिर्फ हमीं थे शाहिद उलफते-बहम के
मशीयते-फ़ितरत ये अब मुश्तहर हो गया।
ताबिशे-छुअन तेरी नर्मगी हथेलियों की
क़ल्ब में खुशरंग मदहोशियाँ भर गया
दम-ब-खुद तेरे घर से हम वापिस हुये थे
बिलयकीं फ़र्ते-उल्फ़ते पे आयां हो गया।
क़ल्ब में खुशरंग मदहोशियाँ भर गया
दम-ब-खुद तेरे घर से हम वापिस हुये थे
बिलयकीं फ़र्ते-उल्फ़ते पे आयां हो गया।
दिल के वीरान गोशों में जब से तू आयी
उमंगों के फूलों का गुलिस्ताँ खिल गया
अफकार नहीं अब तजलील की 'अमर'
संगमरमरी जिस्म तिरा रूह में ढल गया।
उमंगों के फूलों का गुलिस्ताँ खिल गया
अफकार नहीं अब तजलील की 'अमर'
संगमरमरी जिस्म तिरा रूह में ढल गया।
20.
उन हसीन लम्हों ने
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मालूम नहीं हमको क्या जादू किया उन हसीन लम्हों ने
दिल मुर्दा पड़ा था फिर धड़कने लगा आज आपके लिए
आपके पहलू में हूँ क़ज़ा आए फ़िलवक्त कोई गम नहीं
बयां हो रहे ये अब हसीन खयालात सिरफ आपके लिए।
दिल मुर्दा पड़ा था फिर धड़कने लगा आज आपके लिए
आपके पहलू में हूँ क़ज़ा आए फ़िलवक्त कोई गम नहीं
बयां हो रहे ये अब हसीन खयालात सिरफ आपके लिए।
हवाओं के साथ उड़ना व अंगुलियों की छुअन भी ताजी है
शबे-फुरकत ढली आरजू-ए-मुहब्बत आज आपके लिए
भड़कते जज़्बात ढलकते अंदाज व लरज़ते अल्फ़ाज़ मेरे
जज़्बा-ए-दिल औ मशरुफ़ मन है सिरफ आपके लिए।
शबे-फुरकत ढली आरजू-ए-मुहब्बत आज आपके लिए
भड़कते जज़्बात ढलकते अंदाज व लरज़ते अल्फ़ाज़ मेरे
जज़्बा-ए-दिल औ मशरुफ़ मन है सिरफ आपके लिए।
बेपनाह सुकून मिला जब से रुख़सत हुआ सुकुं-ए-दिल
आप ताबीर मेरी तमाम हसरतों का हम हैं आपके लिए
फिर आप रुसवा न होंगे जमाने में कभी अब 'अमर'
जर्रा-जर्रा हलाल मजहबे-इश्के-पयाम है ये आपके लिए।
आप ताबीर मेरी तमाम हसरतों का हम हैं आपके लिए
फिर आप रुसवा न होंगे जमाने में कभी अब 'अमर'
जर्रा-जर्रा हलाल मजहबे-इश्के-पयाम है ये आपके लिए।
21.
दिल के करीब कोई और है
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तू शरीके-हयात किसी और की मुझे है ये खबर ऐ गुल-बदन
तेरे दिल के करीब कोई और है जिसे सौप दिया तूने जां-ओ-तन
चलूँ लेकर तुझे बाहों में अपनी है शायद मेरी ये तदवीर नहीं
ख्वाबों पे कोई बंदिश भी नहीं चूमा करूँ तेरा चाँदनी सा बदन।
तेरे दिल के करीब कोई और है जिसे सौप दिया तूने जां-ओ-तन
चलूँ लेकर तुझे बाहों में अपनी है शायद मेरी ये तदवीर नहीं
ख्वाबों पे कोई बंदिश भी नहीं चूमा करूँ तेरा चाँदनी सा बदन।
कर हदें दिल की पार रूह छूने लगी अब तेरे देह की महक
परवाह किसकी खुदाई में अब हो रहा मुकद्दर आजमाने का मन
दबे होठों सही पयामे-मुहब्बत को आपने भी तो तस्लीम की है
छिन रहा है करार अब चिंगारियों से ही सुलगाने लगा मेरा तन
परवाह किसकी खुदाई में अब हो रहा मुकद्दर आजमाने का मन
दबे होठों सही पयामे-मुहब्बत को आपने भी तो तस्लीम की है
छिन रहा है करार अब चिंगारियों से ही सुलगाने लगा मेरा तन
चुप है जुबा देर से हुजूर आप निगाहों को भी अब सुना कीजिए
मुहब्बत बन गयी जिन्दगी अब मेरी दिल में फुका जो है तूने अगन
डूबा अगर दरिया-ए-इश्क में कयामत का इंतजार किसे है 'अमर'
बर्बादियो का सबब लोग पूछेंगे उनसे जिनमें है मन मेरा मगन
मुहब्बत बन गयी जिन्दगी अब मेरी दिल में फुका जो है तूने अगन
डूबा अगर दरिया-ए-इश्क में कयामत का इंतजार किसे है 'अमर'
बर्बादियो का सबब लोग पूछेंगे उनसे जिनमें है मन मेरा मगन
22.
दीवानों की तरह
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सूरते-दीदार दिल तो में ही रह गया यरब
पर लोग देखने लगे मुझे दीवानों की तरह
मुकर्रर किया वक्त आप ने ही गर याद हो
आपके बिना भीड़ लगी बयाबानों की तरह।
पर लोग देखने लगे मुझे दीवानों की तरह
मुकर्रर किया वक्त आप ने ही गर याद हो
आपके बिना भीड़ लगी बयाबानों की तरह।
सरे-राह बैठा तेरी राह तकता रहा मैं
बेखुदी के आलम में रिंदानों की तरह
नजरे-गुरेज भी किया हर पहचाने चेहरे से
और घूरते रहे लोग भी हमें अजनबी की तरह।
बेखुदी के आलम में रिंदानों की तरह
नजरे-गुरेज भी किया हर पहचाने चेहरे से
और घूरते रहे लोग भी हमें अजनबी की तरह।
कल की गुफ्तगू की तासीर अभी बाकी थी 'अमर'
वहीं जमीन से चिपके रहे हम भी एक बुत की तरह
दूंदे-सीगार ही हमदम था मेरी तन्हाइयों का ऐ दोस्त
फूंकता रहा दिल जलता रहा बिगड़े हुए किसी शायर की तरह।
वहीं जमीन से चिपके रहे हम भी एक बुत की तरह
दूंदे-सीगार ही हमदम था मेरी तन्हाइयों का ऐ दोस्त
फूंकता रहा दिल जलता रहा बिगड़े हुए किसी शायर की तरह।
23.
कुछ ख्वाब कुछ हाकीकत
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शायर हूँ खुद की मर्जी से अशआर कहा करता हूँ
कहता हूँ कुछ ख्वाब कुछ हकीकत बयां करता हूँ
कहता हूँ कुछ ख्वाब कुछ हकीकत बयां करता हूँ
अपनी तो हुनर है तसव्वुर में दीदरे-दहर ऐ दोस्त
थोड़ा मिलकर भी सबकी पूरी खबर रखा करता हूँ।
थोड़ा मिलकर भी सबकी पूरी खबर रखा करता हूँ।
यूं तो पुरकरी की पुरजोर कोशिश करते आप हैं
वो तो मैं हूँ के मुश्तहर सोजे-निहाँ किया करता हूँ।
वो तो मैं हूँ के मुश्तहर सोजे-निहाँ किया करता हूँ।
आप भी तो वाकिफ हैं मेरी तबीयत से मेरे हाकिम
कोहे-गम में अक्सर पासे-हयात ढूंढ लिया करता हूँ।
कोहे-गम में अक्सर पासे-हयात ढूंढ लिया करता हूँ।
कैसे कहें के दुनिया-ए-अदब का इल्म नहीं आपको
तमीज़ भी होती है खुद को फनकार कहा करता हूँ।
तमीज़ भी होती है खुद को फनकार कहा करता हूँ।
जमाने की फितरत है सियासी-सितम सब जानते हैं
सच का सामना हो 'अमर' इसके लिए लड़ा करता हूं।
सच का सामना हो 'अमर' इसके लिए लड़ा करता हूं।
24.
भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
वो हिन्दु-मुसलमां और मंदिर-मसजिद की सियासत किया करते हैं
अक्सर धरम के नाम पर भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं .
अक्सर धरम के नाम पर भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं .
ये घिसे-पिटे लोग सियासतदां होने का दम भरते कभी नहीं थकते
गौर से देखा कर इन्हें सब के सब खाये-अघाये लोग हुआ करते हैं.
गौर से देखा कर इन्हें सब के सब खाये-अघाये लोग हुआ करते हैं.
दरअस्ल ज़िन्दगी की जद्दोज़हद भी एक सियासत ही है मेरे दोस्त
ज़िन्दा रहने की जंग में सियासत के भी मायने बदल जाया करते हैं .
ज़िन्दा रहने की जंग में सियासत के भी मायने बदल जाया करते हैं .
मुल्क के हालात बदलने का ज़िम्मा किनके कंधों पर है नौजावानो
ध्यान रखा कर कई लोग बड़े सलीके से तुम्हें भी बहकाया करते हैं.
ध्यान रखा कर कई लोग बड़े सलीके से तुम्हें भी बहकाया करते हैं.
जमीं-आसमां का फरक है मेरी और आपकी सियासात में हुजुर
करें आप वादों की अफीम से बेसुध पर हम जगा दिया करते हैं.
करें आप वादों की अफीम से बेसुध पर हम जगा दिया करते हैं.
सभी कोई यहाँ सियासात की बात तो रोज ही करते हैं 'अमर'
मगर पूछता हूँ कितने लोग सियासत के मायने जाना करते हैं.
मगर पूछता हूँ कितने लोग सियासत के मायने जाना करते हैं.
25.
एक-एक कर ढ़हने लगीं ईमारतें
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
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अमर पंकज (डा अमर नाथ झा)
एक-एक कर ढ़हने लगी ईमारतें, सारी रेत पर बनी लगती हैं
टूटी हूई इन बस्तियों में अब, आदमी नहीं भीड़ ही दिखती है.
टूटी हूई इन बस्तियों में अब, आदमी नहीं भीड़ ही दिखती है.
उम्र भर कोशिश करते रहे, हम धरोहरों को बचाए रखने की
मगर उजड़ गए गांवों की टीस, यहाँ कहां किसी में दिखती है.
मगर उजड़ गए गांवों की टीस, यहाँ कहां किसी में दिखती है.
उफनती नदी की मटमैली बाढ़ में, धार संग तेरना क्या होता
नदी में छलांग लगाने वाली, जावानी की तासीर में दिखती है.
नदी में छलांग लगाने वाली, जावानी की तासीर में दिखती है.
लबालब भरे पोखर में, पेड़ की डाल से कूद गोता लगाने वालो
बंद-साँसों तलहटी से मिट्टी लाने की, कला निराली दिखती है .
बंद-साँसों तलहटी से मिट्टी लाने की, कला निराली दिखती है .
ज़िन्दगी की जंग जीतने का ज़ज्बा, अब भी बीती कहानी नहीं
कोई बात नहीं अपनों से भेंट, आभासी दुनिया में हुआ करती है.
कोई बात नहीं अपनों से भेंट, आभासी दुनिया में हुआ करती है.
जानता हूँ कि जम्हुरियत की फसल, अब ईंवीएम में लहराती है
आज के दौर में धूर्त्तों-मक्कारों को, चैन की नींद आया करती है.
आज के दौर में धूर्त्तों-मक्कारों को, चैन की नींद आया करती है.
कैसे मर जाने दूँ संवेदानायें और, ज़िन्दा रहने का हौसला 'अमर'
सभी वाकिफ हैं हर महाभारत में, पांडवों की जीत हुआ करती है
सभी वाकिफ हैं हर महाभारत में, पांडवों की जीत हुआ करती है
(आप सभी प्रबुद्ध एवं सहृदय पाठकों और मित्रों से अनुरोध है कि कृपया इन रचनाओं पर अपनी राय जरूर दें। आपकी राय के आलोक में मेरे रचनाकार का मार्गदर्शन होगा।)
विनीत: अमर पंकज झा (डॉ अमर नाथ झा, दिल्ली विश्वविद्यालय)
विनीत: अमर पंकज झा (डॉ अमर नाथ झा, दिल्ली विश्वविद्यालय)