इक ठहरी हुई सर्द शाम
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अमर पंकज
(डा अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
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अमर पंकज
(डा अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
इस गुलाबी शहर की थी वो इक ठहरी हुई सर्द शाम
दिल की पाती से जुड़ा था शबनम सा तेरा नाम।
दिल की पाती से जुड़ा था शबनम सा तेरा नाम।
थम सा गया था वक्त यारो ये रुत भी मुस्कुराने लगी
खनककर चूडियाँ दे रहीं थीं प्यार का पैगाम।
खनककर चूडियाँ दे रहीं थीं प्यार का पैगाम।
अधमुंदी पलकों की होगी अलसाई भोर से मुलाकात
जज्बाती खयालों ने कस ली अश्कों की लगाम।
जज्बाती खयालों ने कस ली अश्कों की लगाम।
जिन्दगी ले चुकी थी करवटें पर पतंगा मिटता ही रहा
इश्क में ता-उम्र शम्मा धू-धू जलती रही गुमनाम।
इश्क में ता-उम्र शम्मा धू-धू जलती रही गुमनाम।
कैसे निकाले बूँद मकरंद की बिखरे हुए परागों से कोई
मोहब्बत फसाना बन धुआँ होती रही सरे आम।
मोहब्बत फसाना बन धुआँ होती रही सरे आम।
मिटा न सकी गर्द गुजरे जमाने की 'अमर' बहकती यादें
लटकते गजरों को महकती साँसों का ये सलाम।
लटकते गजरों को महकती साँसों का ये सलाम।
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