जब भी खिलों फूलों की तरह खुशबू सा समा लेना मुझको
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जब भी खिलो फूलों की तरह खुशबू सा समा लेना मुझको
गर बिखरो बन पराग-कण रस-मकरंद बना लेना मुझको।
फैलो जब बरगद की तरह छाया बनना तुम पथिक के लिए
तन-मन शीतल करने को मंद समीर सा बुला लेना मुझको।
दरिया की तरह इठलाओ तुम हर पल गाओ बढ़ते जाओ
बीहड़ में जों चट्टान मिले तो बर्फ़ सा पिघला लेना मुझको।
झील सी गहरी इन आँखों में जब डूबा जाए युग का यौवन
खुद से मिलने की खातिर तुम मुझसे ही चुरा लेना मुझको।
ख्वाबों में ही तुम जब खो जाओ और गरम साँसें भी निकले
दिल के धड़कन की सरगम का बना राग बसा लेना मुझको।
जब भी खुद को ढूँढा मैने हर बार 'अमर' तेरा अख्श दिखा
पर कट गई उम्र ना खोज मिटी आँसू सा बहा लेना मुझको।
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