अब अण्णा का अनशन समाप्त हुआ. अण्णा के शब्दों मे स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं. बहुत कुछ देखा-सुना-समझा, पूरे दौर में. रोज रामलीला मैदान गया. डूटा के चुनाव के दिन भी गया अपनी इसी समझ को बढाने हेतु. लिखा भी. लगतार लिखा, कुछ छपा, बहुत नहीं छपा. हां वेब साईट पर जरूर पोस्ट करता रहा. अनुभव की दुनिया जरूर स्मृद्ध हुयी. अगर हमें नया संसार बनाना है तो बहुत कुछ करना होगा. नये भारत के निर्माण के लिये अभी बहुत कुछ योगदान करना होगा. सवाधीनता अन्दोलन के इस चौथे दौर मे हमें कयी असहज सवाल भी पू्छने होंगे, अपने आप से भी और वेसे तमाम लोगों से, जो नया समाज बनाने की प्रक्रिया मे लगे हुए हैं--अरसे से. कयी नवीन मानदंड गढने होंगे, कयी पुरातन मूल्यों को भी अपनाना होगा. ताकत परम्परा से लेनी होगी, समझ नयी बनानी होगी. मौजूदा अन्दोलन की कमजोरियों से भी सबक लेना होगा और इसकी शक्ति से अपना खोया अत्मविश्वास हसिल करना होगा. पूरा देश अत्मविश्वास से लबरेज है---वो सुबह कभी तो आयेगी.
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