हमारा ज्ञान वर्धन करें, बड़ी कृपा होगी
सन ४२ की क्रन्ति ने पूरे देश को एक से बढ़कर एक क्रान्तिकारी, बलिदानी, और देशभक्त समाजसेवी दिया--जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया था.परन्तु अब वह पीढ़ी बची नही रही और बदलते सन्दर्भों में नवीन विचारों से लैस आन्दोलन्कारियों की एक ऐसी जमात उभरी है जो सिर्फ़ अंज्रेगी में ही खुद को स्वभविक रूप से अभिव्यक्त कर पाती है. मुझे लगता है यह उनकी मजबूरी है क्योंकि उन्हें बचपन से ही तालीम इसी भाषा में दी जाती रही है. कुछ बड़ा काम कर गुजरने की तमन्ना वाले ऐसी नवीन पौध के लिये नांक-भों सिकोड़ने की बजय हमें उनके अन्दर की पीड़ा को भी समझना चाहिये और उनके दर्द का भागीदार बनना चाहिये क्योंकि अपने बचपन की तालीम पर उनका कोई अख्तियार थोड़े ही था.
लेकिन इससे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि, बीमारू कहे जाने वाले हिन्दी क्षेत्र की जनता के हितार्थ क्या किया जाए-- भषाई रूप से? साफ़-साफ़ कहूं तो हिन्दी को कैसे सही रूप में काम-काज की भाषा बनाया जा सकता है? हिन्दी पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए बहाए जाते हैं--इसका सर्थक परिणाम कैसे प्राप्त हो? इस यक्ष प्रश्न पर आप सभी मित्रोन की राय जानना चाहता हूं. कृपया अपनी-अपनी राय देकर हमारा ज्ञान वर्धन करें, बड़ी कृपा होगी.
कृपया कुछ लिखकर सुझाव दें--मेरी भावना की भूख कुछ तो जरूर शांत होगी.
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