उदास दरख्तों के साये में
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अमर पन्कज
(डा अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
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अमर पन्कज
(डा अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
खामोश वादियों की खामोशी का सफर
उदास दरख्तों के साये में सहमी डगर।
उदास दरख्तों के साये में सहमी डगर।
परिन्दे भी चुप मेरी तन्हाईयों के गवाह
हुआ करता कभी यहीं हमारा भी घर।
हुआ करता कभी यहीं हमारा भी घर।
गुजारी है हमने यहाँ महकती हुई शाम
कैसे घुल गया अब इस फिजा में जहर।
कैसे घुल गया अब इस फिजा में जहर।
जुड़ते रहे रिश्ते जहाँ मासूम दिलों के
अब न महबूब वहाँ न कोई हमसफ़र।
अब न महबूब वहाँ न कोई हमसफ़र।
बेनूर दिख रही आज हर कली यहाँ की
उजड़ा चमन लगी इसे किसकी नज़र।
उजड़ा चमन लगी इसे किसकी नज़र।
बदली नियत 'अमर' बागबां जो बने गए
ऐ सियासत तुझे इसकी क्या कोई खबर।
ऐ सियासत तुझे इसकी क्या कोई खबर।
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